कोरोना लॉकडाउन में फंसे मज़दूरों के खाने-पीने और सुरक्षित यातायात की व्यवस्था करे सरकार

कोरोना लॉकडाउन में फंसे मज़दूरों के खाने-पीने और सुरक्षित यातायात की व्यवस्था करे सरकार

शुरू कर दिया
26 मार्च 2020
को पेटीशन
हस्ताक्षर: 4,60,033अगला लक्ष्य: 5,00,000
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यह पेटीशन क्यों मायने रखती है

द्वारा शुरू किया गया Shirin S Khan and Sunita Kumari Changemakers

“यहाँ शहर में मिट्टी और पत्थर खाएं? बेहतर है कि हम गाँव चले जाएं। कम से कम वहाँ नमक रोटी तो खा पाएंगे।”

टीवी पर एक प्रवासी मजदूर के इन शब्दों से हमारी आत्मा सिहर उठी। वो कई किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव जाने की कोशिश कर रहा था।

कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन के बाद पूरा भारत हालात के सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रहा है। इससे हर भारतीय प्रभावित है लेकिन जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं वो गरीब मजदूर और कामगार हैं, जो बड़े शहरों में रोज़ कमाने खाने की लड़ाई लड़ते हैं। देश में लॉकडाउन के साथ मानो इनके पेट पर भी लॉकडाउन लग गया।

लॉकडाउन का मतलब है कि अगले 3 हफ्तों तक उनके पास कोई काम नहीं होगा। ना कोई आमदानी जिससे वो खाना पाएं। सरकार के राहत पैकेज की घोषणाओं से पहले ही लाखों मजदूर सिर पर बोरी और बच्चों को लादकर पैदल ही अपने गाँव की ओर निकल गए। पैदल, क्योंकि रोड पर कोई बस या सवारी नहीं। वो किसी तरह बस अपने गाँव पहुँचना चाहते हैं।

मेरी पेटीशन साइन कर केंद्र और राज्य सरकारों से मांग करें कि वो प्रवासी मजदूरों के लिए साझा राहत और बचाव अभियान चलाएं। इसमें वो:

1. उन्हें सुरक्षित उनके गाँव पहुँचाने के लिए सवारी का प्रबंध करें
2. रास्तों पर उनके लिए खाने-पीने के कैंप लगाए जाएं ताकि वो भूखे ना रहें

ऐसा करने के लिए विभिन्न राज्यों में बेहतर तालमेल की ज़रूरत है, इसमें ज़िला प्रशासनों की भी बड़ी भूमिका होगी। ये अच्छी बात है कि कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री पहले ही सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे से संपर्क कर रहे हैं और मजदूरों को राहत पहुँचा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (जहाँ से मैं खुद हूँ), ओडिशा, झारखंड, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य एक दूसरे से बराबर संपर्क में हैं। इस राहत और बचाव कार्य में और भी राज्यों को सक्रियता दिखानी होगी।

मेरी पेटीशन साइन करें ताकि लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को तुरंत राहत पहुँचाई जाए। जब हम घर से नहीं निकल सकते, तो कम से कम घर पर रहकर इन मजदूरों के लिए आवाज़ तो उठा सकते हैं।

हमारे सोशल मीडिया का यही सबसे अच्छा उपयोग होगा कि हम उनके लिए आवाज़ उठाएं, अगर हमने ऐसा नहीं किया तो कौन करेगा?

#MazdooronKiMadad

Image Credit: Reuters

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डिसीजन-मेकर (फैसला लेने वाले)