महिलाओं-बच्चियों के प्रति हिंसा के सीन में स्क्रीन पर दिखाई जाए वैधानिक चेतावनी

महिलाओं-बच्चियों के प्रति हिंसा के सीन में स्क्रीन पर दिखाई जाए वैधानिक चेतावनी

शुरू कर दिया
3 अक्तूबर 2019
को पेटीशन
हस्ताक्षर: 2,48,910अगला लक्ष्य: 3,00,000
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यह पेटीशन क्यों मायने रखती है

द्वारा शुरू किया गया Mahika Banerji

सिगरेट और शराब पीने की मनाही है पर महिलाओं को मारने-पीटने की खुली छूट है!

जब आप भारत के सिनेमाघरों में फिल्म देख रहे होते हैं तो जाने-अनजाने में लोगों को यही संदेश मिलता है।

क्योंकि फिल्मों में जब अभिनेता सिगरेट या शराब पीते नज़र आते हैं तो फौरन स्क्रीन पर वैधानिक चेतावनी या स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी आती है। जो दर्शकों को बताती है कि ये उनकी सेहत के लिए हानिकारक है। अगर ये चेतावनी न दिखे तो खुद दर्शकों को भी अजीब लगता है।

लेकिन जब पर्दे पर किसी महिला के साथ हिंसा होती है, दिखाया जाता है कि कोई प्यार में पागल होकर उसे पागलों की तरह मार-पीट रहा है, तब स्क्रीन पर कोई चेतावनी नहीं दिखाई जाती है। शायद हम ऐसी चेतावनी देखना भी नहीं चाहते हैं!

विडंबना देखिए कि अभी हाल ही में कबीर सिंह जैसी हिट फिल्म में ये दोनों दृश्य दिखाए गए। जब हम में से कुछ ने सोशल मीडिया में इसपर आपत्ति दर्ज करनी चाही तो हमारा मुँह ये कहकर बंद कर दिया गया कि “महिलाओं के प्रति हिंसा तो आम बात है” या ये कहकर कि “अगर आदमी प्यार में पागलपन न दिखाए तो फिर काहे का प्यार।”

मेरे लिए ये सारे तर्क भयावह और अजीब हैं। मैं, कोई भी महिला या पुरुष भी इसबात से सहमत नहीं होगा। हम किस दुनिया में रह रहे हैं? हिंसा, चाहे वो महिलाओं के प्रति हो यो पुरुषों के, उसको सामान्य नहीं कहा जा सकता और उसका बखान तो किया ही नहीं जाना चाहिए। खासकर तब, जब अखबार महिलाओं के साथ बर्बरता की खबरों के खून से सने हों, उनमें छोटी, मासूम बच्चियों की चीखें दबी हों। तब, जब महिलाओं के प्रति होने वाला हर अपराध पिछले अपराध से कहीं ज्यादा खौफनाक हो।

मैं अपनी पेटीशन से हिंसा की इस मानसिकता को, इस सोच को बदलना चाहती हूँ। मेरा यकीन है कि स्क्रीन पर लिंग आधारित हिंसा (Gender Based Violence) के साथ वैधानिक चेतावनी को दर्शाने से हिंसा के प्रति समाज का नज़रिया बदला जा सकता है। ये एक आसान लेकिन सोचने पर मजबूर कर देने वाला तरीका है जिससे महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ लोगों को एक बड़ा संदेश दिया जा सकता है।

जैसे सिगरेट या शराब पीने की चेतावनियों ने हमें जागरुक किया है वैसे ही हिंसा के खिलाफ वैधानिक चेतावनियों से लोगों को इसके प्रति जागरुक और संवेदनशील बनाया जा सकता है।

लोग फिल्मों को देखकर ही बड़े होते हैं और फिल्मों से बहुत कुछ सीखते भी हैं। कितने शोध और सर्वे इसबात पर मुहर लगाते हैं कि फिल्मों का हमारे दिमाग पर गहरा असर होता है। मैं किसी बैन की मांग नहीं कर रही हूँ बल्कि एक चेतावनी दिखाए जाने की मांग कर रही हूँ।

मेरी पेटीशन पर हस्ताक्षर कर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से मांग करें कि वो महिलाओं और बच्चियों के प्रति हिंसा को दर्शाने या दिखाने वाले हर दृश्य के साथ स्क्रीन पर वैधानिक चेतावनी एवं डिस्कलेमर को दिखाना अनिवार्य करें। ये सिनेमा और टीवी कार्यक्रम दोनों के लिए लागू होना चाहिए।

सोचिए कि अगर महिलाओं और बच्चियों के प्रति हिंसा के हर सीन के साथ ऐसा हो:

1. उनके नीचे एक डिस्क्लेमर दिखाया जाए कि ऐसी हिंसा भारत में कानूनन जुर्म है, जिसकी कड़ी सज़ा मिलेगी।
2. फिल्में जिनमें महिलाओं और बच्चियों के प्रति हिंसा हो उनमें एक अलग से डिस्क्लेमर होना चाहिए।
3. फिल्म शुरू होने से पहले या इंटरवल के समय एक 30 सेकंड का ऐड दिखाया जो हर प्रकार की हिंसा का विरोध करता हो।

मुझे पूरा यकीन है कि अगर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड भारत के लोगों के स्वास्थ्य को लेकर इतना गंभीर है तो वो भारतीय समाज में हिंसा को लेकर भी गंभीर होंगे। 21वीं सदी के भारत में भारत की महिलओं और बच्चियों के प्रति हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए!

इस पेटीशन पर हस्ताक्षर कर के इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कर के मेरी मदद करें।

#HinsaAurNahin

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डिसीजन-मेकर (फैसला लेने वाले)