समाज में ज़हर फैलाती टीवी डिबेट्स, लगनी चाहिये रोक
समाज में ज़हर फैलाती टीवी डिबेट्स, लगनी चाहिये रोक
Why this petition matters
आजकल न्यूज चैनल प्राइम टाइम स्लॉट में डिबेट्स (debate) के नाम पर कचरा ब्राडकास्ट कर रहे है। बोलने की आज़ादी का नकाब ओढ़े ये प्रसारित की जा रही है। ये डिबेट्स सिर्फ और सिर्फ नफरत, साम्प्रदायिकता, भड़काऊ बयान और गिरे हुए ज़ुबानी लहज़े से ग्रसित तथ्यों को परोसती है। ये दोयम दर्जें के स्तरहीन संवादों को टीवी के जरिये परोसती है। इनसे ना तो किसी समस्या का हाल होता है और ना ही किसी भी मायने में ये सार्थक होती है। गाली गलौज, व्यक्तिगत आक्षेप और अमार्यदित आचरण लगातार टीबी डिबेट्स का हिस्सा बनता जा रहा है।
एक टीबी डिबेट्स के लिये चाहिये झगड़े पर उतारू दो पक्ष और कार्पोरेट पत्रकारिता के दबाव में जूझ रहा पूर्वाग्रहों से ग्रसित एंकर। ऐसे में ये लोग क्या किसी समस्या का हल कर पायेगें? ज़वाब साफ है नहीं। टीबी डिबेट्स के जरिये आम जनता का भला नहीं होता। भला होता है तो सत्ता का पक्ष अपनी छवि चमकाने के लिये, भला होता है विपक्ष का अपने नंबर बनाने के लिये, भला होता है कार्पोरेट पत्रकारिता करने वाले घरानों का जो कि उत्तेजक और भड़काऊ मामलों को छौंका लगाकर टीआरपी बटोरते हुए अपनी जेबें गर्म करते है।
टीबी डिबेट्स के नाम पर होता है- एजेंड़ा सेटिंग, नैरेटिव बिल्डअप, इमेज मेकओवर, पॉलिटिकल प्लॉटिंग, व्यक्तिगत बयानबाज़ी और गाली गलौज
खुद के पूछे ये सवाल
· आज तक टीबी डिबेट्स से किसी समस्या का हल हुआ है?
· मौजूदा हालातों लोकतंत्र कितना मजबूत करती है ये टीबी डिबेट्स?
· आम आदमी के मुद्दे (जैसे गरीबी, भुखमरी, मंहगाई और भष्ट्राचार) कितनी बार उठते हुए देखे आपने टीबी डिबेट्स में?
· आज तक आपने कितनी बार देखी है न्यूट्रल टीबी डिबेट्स?
· क्या वाकई आजकल जो आप टीबी डिबेट्स देखते है, उसमें मर्यादा, शालीनता और शब्दों की गरिमा का ख्याल रखा जाता है?
· टीवी चैनल चलाने वाले कार्पोरेट घराने क्या वाकई आपको टीबी डिबेट्स के जरिये सच्चाई पेश करते है?
कायदे से होना चाहिये कि टीवी सिर्फ और सिर्फ न्यूज दिखाये और वो भी न्यूट्रल तरीके से। देश की जनता काफी समझदार है, वो अपनी अच्छाई-बुराई अच्छे से समझ सकती है। एंकर का काम सिर्फ न्यूज सुनाने का होना चाहिये ना कि देश की जनता को ये बताने का कि उनका क्या अच्छा है और क्या बुरा। टीबी डिबेट्स रूकेगी तो मज़हबी तनाव कम होगा, विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास का भाव नहीं पनपेगा, धार्मिक और संवेदनशील मामलों पर बेलगाम बयानबाज़ी नहीं होगी। सबसे बड़ी और अहम बात पत्रकारिता की शुचिता और गारिमा कायम रहेगी, जिसकी आज सबसे ज़्यादा जरूरत है। अगर ये जारी रही तो बड़े दंगों का सब़ब बन सकती है। बतौर जिम्मेदार नागारिक अब फैसला आपके हाथों में है।